Friday, August 23, 2013

नज़्म

हम चुप-चुप से बैठे रहते हैं
एक दूसरे के साथ होकर भी
जब कोई तीसरा आ कर
जिक्र छेड़ देता है किसी चौथे का
तब दो बातें हो जाती हैं आपस में
ख़त लिखने का तो अब रिवाज़ ही उठ गया
नहीं तो पोस्टकार्ड पे लिखे वो लफ्ज़
बोलते से मालूम होते थे अक्सर
टेलीफोन की घंटियाँ बजने पर भी
वो उत्साह नहीं होता, दौड़ कर चोगा उठा लेने का
कई घरों में तो वो चोगे हैं भी नहीं
लोग जेब में डाल कर ही घूमते हैं दूरभास को
फिर भी बातें नहीं होती कभी
शायद निदा फाजली को सुन रखा है सबने
" बात कम कीजे, जहानत को छुपाते रहिये"
जहीन नहीं हैं हम, बस उम्र की चादर ओढ़े
थोड़े से बड़े हो गए हैं ॥




Sunday, June 16, 2013

नज़्म

मैं तेरी तस्वीर के साये में ...
सुनता हूँ मेहँदी हसन को हजारों बार
जब-जब वो कहते हैं, "रंजिश ही सही"
यूँ लगता है धडकनें निकाल कर रख देंगे
तुझे बुलाने की खतिर।
तू बुत तो नहीं है, फिर सुनता क्यूँ नहीं।
पढ़ के पांच नमाजें रोज़ तो लोग खुद को भी बुला लेते हैं।।


नज़्म

वो जब तुम पिछली दफा मिले थे
जाने कौन सी खुशबू ओढ़ रक्खी थी ...
हंस के जो कुछ कहा था उस रोज़
लिपट कर जुबाँ के सहारे तेरी
एक कतरा मुझ तक भी पहुँच आया था ।
उगल कर साँसों को अपनी मैंने
एक शीशी में सहेज कर रख लिया है उसे ।
अक्सर इत्र की तरह लगाकर
निकल जाता हूँ शहर में, जाने किस मोड़ पर
अपनी महक से तुम हमें पहचान लो ।


नज़्म

मैं तोड़ कर ले आता हूँ लफ्ज़
हमेशा ही तसव्वुर की शाखों से
और उनको नहला कर रोशनाई के हम्माम में
पहना देता हूँ रेशमी पैरहन
महबूब से गुफ्तगू करने की खातिर।
एक-एक को करीने से सजा कर रक्खा है
अपने होठों पर मैंने।
कभी आकर चूम लो इन्हें बरबस
तो ग़ज़ल मुकम्मल हो जाए। 

Friday, April 19, 2013

चंद मुलाकातों में ही तेरी रग-रग को भाँप रक्खा है 
अपनी शख्सियत को तूने इस चेहरे से झाँप रक्खा है 

वो तो एक ओहदे की तर्ज़ पर खामोश बैठे हैं हम 
वरना तेरी हैसियत का कद हथेली से माप रक्खा है 

Monday, April 15, 2013


यूँ बे-पैरहन ना उतरा करो हमाम मे शहज़ादी
अंगड़ाईयाँ भर-भर के आब भंवर हो जाएगा

Tuesday, April 02, 2013

हमने करीने से सजा कर छोड़ रक्खा था उनकी यादों को
ये बदहवास हवा एक झोंके में सब को जिन्दा कर गयी

Saturday, March 02, 2013

नेकियाँ खरीदीं हैं हमने अपनी शोहरतें गिरवी रख कर 
कभी फुर्सत में मिलना जिंदगी, तेरा भी हिसाब करेंगे 


Wednesday, February 27, 2013

वो जो हर रोज़ लौट जाता है मेरे ख्वाब की दहलीज से 
उससे कहो, "पाजेब की आहट से मुझे जगाया ना करे"

Saturday, February 23, 2013


मियाँ सुपुर्द-ए-ख़ाक की जैसी भी हो तरकीब, बता देना  
जहमत हो तो दफन कर लेना, वगरना यूँ ही जला देना 

आखिरी ख्वाहिश में 'शहजाद', इतनी सी रहमत अता करना  
चार हसीनो से जनाज़ा उठवाना, दो शेर 'ग़ालिब' के सुना देना  

Wednesday, February 20, 2013

ग़ज़ल

कलम से खींच कर लकीरें कलाकारी पर उतर आऊंगा 
ऐ मोहब्बत दूर रह मुझसे, मैं शायरी पर उतर आऊंगा

जब तलक हासिल हूँ तुम्हें अपनी तकदीर पे खैर करो
गर कीमत लगाने बैठोगे, मैं खुद्दारी पर उतर आऊंगा  

ये हुनर शौकियाना है, कभी जिंदगी नहीं देगा 'शहजाद' 
जो भूखे पेट रहना पड़ा, तो ख़ुदकुशी पर उतर आऊंगा  


Saturday, February 09, 2013

उनकी शक्लों पे हंसी फीकी पड़ जाती है सामने आते हुए 
जिनकी सोहबत में एक यार नहीं, दो-चार तरफदार होते हैं 

Tuesday, January 29, 2013

ग़ज़ल

मौसमी हवाओं में रंगत नयी-नयी सी है 
वो आ रहा शहर में खबर उड़ी-उड़ी सी है

कल परिंदों ने कहा, 'एक तुम ही नहीं हो घायल'
आह हर किसी के दिल में यहाँ दबी-दबी सी है 

हाय कि तेरा शर्मना वो धूप की अदाओं जैसा  
लगता है जैसे सेहरा की नज़र झुकी-झुकी सी है

रात तुम ख्वाब में क्या आये बवाल हो गया 
माँ सुबह कह रही थी कि सूरत खिली-खिली सी है 

हुई मुद्दत राह तके अब आ भी जाओ 'शहजाद'
घड़ी दर घड़ी वक़्त-ओ-मुझमे ठनी-ठनी सी है 


यूँही नहीं मोहब्बत ने उससे बेदिली की होगी
जरूर किसी शायर से उसने दिल्लगी की होगी 

चील-कौवे भी देने लगे हैं उसके आशियाने पे दस्तक
जाने कितने इश्क्जादों ने वहां ख़ुदकुशी की होगी

    

Friday, January 25, 2013

26 जनवरी

26 जनवरी..!!! 
हर साल की तरह फिर से आ गयी 
लेकर फिर वही तिरंगों के दौर
वही लता की आवाज़ में गूंजता संगीत 
और वही सुबह-सुबह बच्चों में दिखती उमंग, 
कामकाजी लोगों के लिए छुट्टी का दिन 
और युवाओं के लिए 'Dry Day'
'पाँच' पहलुओं में समेट  कर रख दे कोई 
इस तारीख से जुडी हरकतें, 
और भी कुछ सोच लें, गर छूट गया हो तो।
लाजमी भी है, 'पाँच' पहलुओं पर ही तो बनी थी ये तारीख 
'Sovereign' 'Socialist' 'Secular', 'Democratic' और 'Republic'
पर ये 'पाँच'  पहलू आपको 26 जनवरी में नहीं मिलेंगे 
इसके लिए जरा जहमत उठाइये,
"गणतंत्र दिवस' मनाइये। 

Sunday, January 06, 2013

सिखलाते हो सलीका हर नुक्स निकाल के
अब थोडा तो छेड़-छाड़ करो, मैं नशे में हूँ  

Friday, January 04, 2013

कल ख्वाब में आया था 'ग़ालिब' ही 'शहजाद' के
दो बोतलें खाली थीं औ' एक शेर छोड़ रक्खा था

Thursday, January 03, 2013

कोई हर्फ़ कोई लफ्ज़ जुबाँ पे आता नहीं  'शहजाद'
वो जाते-जाते तसव्वुर भी अपना ले गया छीन कर