Friday, April 19, 2013

चंद मुलाकातों में ही तेरी रग-रग को भाँप रक्खा है 
अपनी शख्सियत को तूने इस चेहरे से झाँप रक्खा है 

वो तो एक ओहदे की तर्ज़ पर खामोश बैठे हैं हम 
वरना तेरी हैसियत का कद हथेली से माप रक्खा है 

Monday, April 15, 2013


यूँ बे-पैरहन ना उतरा करो हमाम मे शहज़ादी
अंगड़ाईयाँ भर-भर के आब भंवर हो जाएगा

Tuesday, April 02, 2013

हमने करीने से सजा कर छोड़ रक्खा था उनकी यादों को
ये बदहवास हवा एक झोंके में सब को जिन्दा कर गयी