Wednesday, October 31, 2012

मैं खुली आँखों से ही देखा करता हूँ सपने 'शहजाद'
ये वो ख्वाब नहीं, जो नींद उचट जाने के मोहताज हों 

Tuesday, October 30, 2012

मत सेंकिए ख्वाब यहाँ सिक्के की आँच पर
ज़माने में भी हर शोहरत बिकाऊ नहीं होती  

Saturday, October 27, 2012


मैं दीवारों से पूछ लेता हूँ बगल के कमरे का हाल 
मकाँ में एक वही हैं जिनसे किसी को रंजिश नहीं 

Thursday, October 18, 2012

खींचते हो कश पे कश शेख-मिजाजी से
जिंदगी तेरी, धुंए में उडी जाती है लेकिन   

Monday, October 15, 2012


मिटा दो हर्फ़-हर्फ़ उनके नया पैगाम लिख डालो 
हथेली की लकीरों से, खूनी अंजाम लिख डालो 

बड़ी जल्दी में हैं तारीखें, सेहर तक बदल जाएँगी 
गुज़रते हुए हर एक मंजर पे अपना नाम लिख डालो