तुम हमसे यूँ बेरुखी की आदत बदल डालो
जरा देर ही सही पर ये हकीकत बदल डालो
हम हुस्न्फरोश इस कदर खिंचे चले आते हैं
हो सके तो तुम अपनी ही सूरत बदल डालो
क़ुबूल कर खुदा तुम्हे फरिश्तों से बैर किया
अब कहते हो रस्म-ऐ-इबादत बदल डालो
पी लेते हो ओक से गर पैमाना टूट जाता है
जो शै लाचारी बन बैठे वो आदत बदल डालो
बहुत हुआ कि खैरात में लुटाते रहे 'तीर्थराज'
तुम भी वफाओं की अपनी कीमत बदल डालो