जब त्रिश्नाएं खो जाती हैं
मरीचिका सी मेरी,
सारी इक्षाएं रह जाती हैं|
बेबसी की धूप से,
अरमानो को सींच कर
ललक के शुष्क तरु में
सारी कल्पनाएँ उलझ जाती हैं|
मजबूरियों की ओट में,
चाहतों को छुपाकर
ह्रदय में होकर कुंठित
सारी लालसाएं दब जाती हैं|
बंद कमरों के पिंजर में,
खुद को ही बांधकर
आंसुओं के सैलाब संग
सारी तमन्नाएं बह जाती हैं|
ख्वाइशों को फिर भी लेकिन,
जेहन में अपने संजोकर,
रास्तों की धुंध में
मंजिलें निगाहों में रह जाती हैं|
प्यास जगाकर ...........|