ये तुम्हारा चेहरा है...
कि जैसे फ़रिश्ते का हो अक्स कोई
ये तुम्हारी आँखें हैं...
कि जैसे सागर से किसी ने दो झीलें चुरा ली हों
ये तुम्हारे गेसू हैं...
कि जैसे शोख घटाओं का बिखरा हो आँचल कहीं
ये तुम्हारी पलकें हैं ...
कि जैसे पैमाने से कुछ-एक बूँद छलकता नशा
ये तुम्हारी खुशबू है...
कि जैसे अर्क की एक-एक बूँद ने सहस्रों गुलाब खिलाये हों
कि जैसे आसमाँ फलक से जमीं पे झुका हो कहीं
ये तुम्हारे बदन की नक्काशी है...
कि जैसे खुदा की फुर्सत-ऐ-तराश का नमूना
ये तुम्हारे चर्चे हैं...
कि जैसे महताब की लौ में जुगनुओं की गुफ्तगू
ये तुम्हारी आवाज़ है...
कि जैसे अनकही आरजू में दबी हुई चंद ख्वाहिशें
ये तुम्हारी चूड़ियाँ हैं...
कि जैसे कमल की पंखुड़ियों पे पहली बारिश की छम-छम
ये तुम्हारे होठ हैं...
कि जैसे सुबह-सुबह दूब की नोक पे ओस की एक बूँद
ये तुम्हारी अदाएं हैं...
कि जैसे तितलियों का झूम के मचलना
ये तुम्हारा एहसास है...
कि जैसे जाड़े की सुबह छूके पानी,बदन की सिहरन
ये तुम्हारी हँसी है...
कि जैसे कोंपल से फूटते अंकुर का वो उन्माद
ये तुम्हारा साज है...
कि जैसे मीर की ग़ज़ल में रक्खा एक-एक लफ्ज़
ये तुम्हारी बिंदिया है...
कि जैसे सितारों के बीच वो तन्हा रौशन सा चाँद
ये तुम्हारी मौजूदगी है...
कि जैसे "तीर्थराज" ने ख्वाबों की एक ताबीर लिखी हो