Tuesday, August 16, 2011

कभी-कभी

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि हम 'दो' ना रह पाते तो बात और होती

ना जी भर के देखा कभी तुम्हे
ना इसकी तवक्को हुई अब तक
जो अक्स मेरी नजरों में है छुपा 
वो नज्र हो जाता तो बात और होती

वो लब खामोश हैं गर,तो मुझे कोई गम नहीं
मैं हो जाता जो तेरे लिए गैर
तो बात और होती

एक अरसे से हमने वो सुबह नहीं देखी
नजरें कि जैसे बेजुबां हो चली हैं अब
मुदत्तों बाद वो शाम फर आ जाये
तो बात और होती

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि हम 'दो' ना रह पाते तो बात और होती ||

मिले तो थे बेहिसाब नजराने मोहब्बत करने को
जो तू मिली होती मेरी हम्न्फज़ कहीं
तो बात और होती

एक रस्म है ये भी,तुम परदे में रहो हमसे
एक रस्म है ये भी,मैं सहरापसंद मिलूं तुमसे
दस्तूर जमाने के हैं ये
चाँद पूनम का दिख जाता
तो बात और होती

ये माना हम कह नहीं सकते जुस्तजू क्या है
खामोशियाँ गर तुम जो समझ जाती
तो बात और होती

एक नाम जो रेत पे लिखता हूँ मैं हर दिन
एक महल जो ख्वाबों का मैं सजाता हूँ हर दिन
कभी हम 'मैं' से 'हम' हो जाते 
तो बात और होती
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि हम दो ना रह पाते तो बात और होती || 

आजादी के नाम...

सियासी कलमकारों की लिखी हुई एक बिन-पढ़ी किताब हूँ
मुफलिसी पे हैं जो डालते परदे मैं उसी अमीरी का हिजाब हूँ

चर्चे बहुत हैं इस मुल्क के अब पड़ोसियों के आँगन में
अरे कहने को तो मैं भी किसी आशियाने का आफताब हूँ

बदल रहे हैं यहाँ आजकल गुजारिशों के भी मायने 
सफेदपोशों की हुकूमत में मैं खुद ही एक फ़रियाद हूँ

तिरंगा बेचकर भी बेटा,जब बाप को कफ़न दे नहीं पाया
फिर कैसे कहते हो,'तीर्थराज' कि आज मैं आजाद हूँ ???