Monday, November 26, 2012


फिसलती रही तेरे गेसू के सहारे मेरी नजर 
छुपकर दुपट्टे में आखिर, सीने पे बैठ गयी 

Saturday, November 24, 2012

पथरायी सी आँखें, रुखसार पे नमी खोयी-खोयी सी 
कोई वो शख्स नहीं रहा जो मुझसे बिछड़ गया था कभी 

Wednesday, November 21, 2012

ग़ज़ल


वो ख्यालों में भी मेरा जिक्र छेड़ दे तो मोहब्बत लिख देता 
फेर कर उँगलियों कोरे कागज़ पे अपनी ज़हमत लिख देता

झील में फेंके हुए मंजर कोई लौटाए ना लौटाए मुझे लेकिन  
फिर उस किनारे पे मिल जाता, मैं सारी हसरत लिख देता   

कितने ही यारों की कहानियाँ बयाँ की हैं मेरे अल्फाज़ ने
'शहजाद' कोई महबूब ना मिला, जिसे मैं ख़त लिख देता   


Wednesday, November 07, 2012

किस गुरूर-ए-तर्ज़ पे 'शहजाद' मेरी तौहीन करता है  
हम शख्सियत रखते हैं, वो केवल हुस्न रखता है 

Monday, November 05, 2012

भरी जम्हूरियत में कभी ऐसी भी झांकी होगी 
किसी दिन हिन्दोस्ताँ को चौराहे पे फांसी होगी 

नौकरशाहों के हाथ बंधे होंगे कागज़-ओ-कलम लिए
मुहर अंगूठे का हर तरफ सियासत लगाती होगी