वो ख्यालों में भी मेरा जिक्र छेड़ दे तो मोहब्बत लिख देता
फेर कर उँगलियों कोरे कागज़ पे अपनी ज़हमत लिख देता
झील में फेंके हुए मंजर कोई लौटाए ना लौटाए मुझे लेकिन
फिर उस किनारे पे मिल जाता, मैं सारी हसरत लिख देता
कितने ही यारों की कहानियाँ बयाँ की हैं मेरे अल्फाज़ ने
'शहजाद' कोई महबूब ना मिला, जिसे मैं ख़त लिख देता