Sunday, October 30, 2011

नजदीकियां बढ़ाने का भी ये बड़ा अच्छा तरीका है "तीर्थराज"
गम-ए-गुफ्तगू भी हमसे की,मेरी तलब से ऐतराज़ भी है 

Wednesday, October 26, 2011

दास्तान-ए-इश्क में ये कलाम भी लिख लेना 'तीर्थराज'
यहाँ सांसें तो उधार मिल जाती हैं,जिंदगी नहीं मिलती 

Wednesday, October 19, 2011

ग़ज़ल

मुदत्तें हुईं कलम से रुक्सती किये हुए,आज ग़ज़ल लिखते हैं
किसी ने चुपके लगता है याद किया है,आज ग़ज़ल लिखते हैं

शाम आवारा रोशनियों के बाबस्ता गुज़र जाती थी मेरी
चरागों ने थोड़ी लौ बुझाई है दोस्तों,आज ग़ज़ल लिखते हैं

ना शौक ना इल्म ना किसी से तगाफुल-ए-जुस्तजू का डर
उनके रेशमी उलझनों से हुए बेबाक,आज ग़ज़ल लिखते हैं

वो पुकारे मेरा नाम तो तुम भी हँस कर कह देना 'तीर्थराज'
अकेले हैं,किसी के साथ हैं,तन्हा हैं,आज ग़ज़ल लिखते हैं 

  

Monday, October 17, 2011

मुझसे ना पूछिये छलकते पैमानों का सबब 'तीर्थराज'
मैं अपने महबूब की आँखों से काजल चुराकर आया हूँ 

सेहरा में पलने वालों ने कभी शाख-ए-गुलाब नहीं देखे
एक सितारा देखा है कभी सैकड़ो आफ़ताब नहीं देखे

मेरी  नाकाम तबीयत पर ऐ कहके लगानेवालों
आँखें देखी हैं तुमने मेरी,कभी मेरे ख्वाब नहीं देखे 

Monday, October 10, 2011

जाहिरी जीत पर बेशक इतरा सकते हो तुम
तेरी शोहरतों से हमें कोई ऐतराज़ नहीं 

ले जाओ लूटकर तमगे घरों में अपने 
काबिलियत मेरी,चंद इनामों का सरताज नहीं

ये कुछ लोग जो तस्वीरें रोज बदलते हैं 'तीर्थराज'
इनसे कहो,शक्शियत कभी चेहरों की मोहताज नहीं